नई दिल्ली. (शेखर घोष) लगभग दो हजार करोड़ रुपए खर्च करने और बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाने के बाद भी केंद्र और दिल्ली सरकार 25 वर्षों में यमुना को साफ नहीं कर पाई। लेकिन कोराेना वायरस के संक्रमण के चलते लागू लॉकडाउन के कारण दिल्ली में यमुना करीब 60 प्रतिशत तक साफ हो गई है। 12 दिनों में पल्ला से वजीराबाद बैराज के पहले तक और सिग्नेचर ब्रिज से ओखला बैराज तक तो पानी शीशे जितना साफ हो गया है। वजीराबाद नवगजा पीर के सामने नजफगढ़ और बुराड़ी बाईपास से आ रही गंदे नाले के पानी वाली जगह छोड़ दें तो पल्ला से लेकर ओखला बैराज तक कहीं पानी गंदा नहीं है।
इस बारे में मैग्सेसे अवार्ड विजेता वाटरमैन के नाम से प्रख्यात राजेन्द्र सिंह ने भास्कर से बताया कि गलत डॉक्टर से ईलाज के कारण मृत्यु के द्वार आईसीयू में पंहुच चुकी यमुना लॉक डॉउन ने जनरल वार्ड में आ गई है। उन्होने कहा केन्द्र और दिल्ली सरकार को यमुना के सफाई के लिए किए जा रहे प्रयासों पर 40 साल से अंगुली उठा रहा हूं। बता रहा हूं कि प्रदूषित जल और नदियों के अपने जल को जब तक अलग नहीं किया जाएगा तब तक यमुना साफ नहीं हो सकती। अब पुलिस सख्ती के कारण सभी इंड्रस्ट्री बंद हो गई और नदी में नजफगढ़, बुराड़ी बाईपास और शाहदरा नाले से यमुना नदी में इंड्रस्टियल केमिकल युक्त सीवेज का पानी आना बंद हो गया। इन नालों से इस समय आर्गेनिक सीवेज का दूषित जल है, जो नदी में कुछ दूर चलकर प्रकृति के अनुसार ठीक हो जाता है जबकि केमिकल युक्त नॉन आर्गेनिक सीवेज ठीक नहीं हो पाता।
बड़ी वजह : लॉकडाउन के दौरान उद्योग बंद हैं, इससे नजफगढ़, बुराड़ी बाईपास और शाहदरा नाले से यमुना नदी में केमिकल युक्त सीवेज का पानी आना बंद हो गया है
जलपुरुष राजेंद्र सिंह बोले... गलत डॉक्टर से इलाज के कारण आईसीयू में पंहुच चुकी यमुना लॉक डॉउन से जनरल वार्ड में आ गई।
सरकार जो काम 1994 से 2000 करोड़ रुपए स्वाहा कर भी नहीं कर पाई, यह लाॅकडाउन के 12 दिन में हो गया। इंड्रस्ट्री से बिना ट्रीटमेंट के केमिकलयुक्त सीवेज के कारण यमुना बीमार होती गई। सरकार सुनीश्चित करे कि लॉकडाउन खुलने के बाद इंड्रस्ट्री का गंदा पानी यमुना में नहीं आए। - मनोज मिश्र, पर्यायवरणविद
यमुना में रोज 200 मिलियन गैलन गिरता है बिना ट्रीटमेंट का सीवेज का पानी : यमुना के लिए सबसे बड़ी समस्या दिल्ली में रोज निकलने वाला 700 मिलियन गैलन सीवेज वाटर है। इसमें 200 मिलियन सीवेज वाटर बिना ट्रीटमेंट के यमुना में गिरता है। एनजीटी ने दिल्ली सरकार को 1 जून, 2019 को दिल्ली जल बोर्ड को निर्देश दिया था कि यमुना में नालों के सीवेज को ट्रीटमेंट के बाद ही छोड़ा जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली सरकार के 20 वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैं तो पर काम सही तरीके से नहीं कर रहे हैं। डीजेबी को मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता बढ़ानी थी। यमुना में सीवेज ले जा रहे चार नालों पर भी लगाम लगानी थी और इंटरसेप्टर सीवेज प्रोजेक्ट आईएसपी के जरिए बिना सीवर लाइन वाले इलाकों को सीवर से जोड़ना था। पूरी दिल्ली में 20 एसटीपी की जगह 200 लगाने होंगे।
यमुना की बदहाली में दो नालों का बड़ा हाथ : यमुना की बदहाली के दो बड़े कारण हैं। एक नजफगढ़ व बुराड़ी बाईपास नाला और दूसरा शाहदरा वाला नाला। इनसे आधी से अधिक दिल्ली की अनाधिकृत कॉलनियों का गंदा पानी यमुना में गिरता है। दिल्ली में यमुना से जुड़ी 22 सहायक प्राकृतिक धाराएं भी हैं। इनसे बहकर बारिश का पानी नदी में आता था। अब डीजेबी अनाधिकृत कॉलनियों से पानी निकासी के लिए इन श्रोतों का उपोयग नाले के तौर पर कर रहा है।
अभी तक पूरे नहीं हुए कई प्रोजेक्ट : पूर्व पर्यायवरण मंत्री गोपाल राय ने भी माना था कि नजफगढ़ व शाहदरा ड्रेन से यमुना सबसे ज्यादा गंदी होती है। दोनों ड्रेन का जल साफ करने के लिए 6 पैकेज में इंटरसेप्टर सीवर परियोजना को लागू करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि इसके तहत नालों में बहने वाला अपशिष्ट जल प्लांट तक पहुंचाया जाएगा। प्रोजेक्ट 31 मार्च 2020 तक पूरा होना था जो नहीं हुआ।